कश्मीर के जांबाज
आजकल देश में चुनाव का मौसम चल रहा है, विश्व के सबसे बङे लोकतांत्रिक देश होने की वजह से हम सभी की जिम्मेदारियां भी बढ जाती हैं । देश के हर एक नागरिक का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने कीमती वोट का प्रयोग करे ताकि देश को एक मजबूत सरकार मिल सके ।
हम सभी यह जानते हैं कि देश को आजाद कराने में हमारे लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन की आहुति दी है, अगर हमारे देश के, आज के हालात पर निष्पक्ष चर्चा की जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि देश के एक हिस्से में ,खासतौर से कश्मीर में आज भी अमन और चैन कायम नही हो पाया है , इसके पीछे वजहें कई हैं लेकिन सबसे बङी वजह है वहां के राजनीतिक दल और वहां रह रहे अलगाववादी, जो रहते हमारे देश में हैं लेकिन हमदर्दी पाकिस्तान के साथ रखते हैं । अफसोस इसी बात का है कि आखिर ऐसे विकृति मानसिकता वाले लोग हमारे देश में क्या कर रहे हैं ??? उनके खिलाफ कङी से कङी कार्यवाई क्यूं नही की जा रही है ???
आज कश्मीर में पत्थरबाजों ने आतंक मचा रखा है, ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यूं हो रहा है ??? सबसे बङी वजह जो हमें समझ आ रही है वह है बेरोजगारी, इसी का फायदा उठाकर वहां के मासूम बच्चों को पैसों का लालच देकर पत्थरबाजी करवायी जा रही है और अपने ही लोगों को इसका शिकार बनाया जा रहा है ऐसे में सबसे बङा सवाल यह है कि वहां के लोगों को रोजगार मिले भी तो कैसे ??? क्यूंकि जम्मू और कश्मीर के विकास में बाधक धारा 370 और 35ए को वहां के राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिये पाल पोस रखा है ।
हम सभी यह जानते हैं कि आज कश्मीर में जो भी हो रहा है उसकी मुख्य वजह हमारा पङोसी देश पाकिस्तान है , उसके साथ साथ हमारे देश में पल बढ रहे अलगाववादी और कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं, लेकिन यहां यह भी जान लेना आवश्यक है कि कश्मीर की अवाम बिल्कुल भी ऐसी नही है ।
कश्मीर के चंद लोग ही वहां के माहौल को खराब कर रहे हैं , ऐसे लोगों ने इस कदर आतंक फैला रखा है कि कशमीर की बाकी अवाम डर के साये में जी रही है, अफसोस इसी बात का है कि ऐसे दहशतगर्दों पर आज तक कश्मीर के हुक्मरान खामोश ही रहे, अपना मूक समर्थन देते रहे और इसी खामोशी की वजह से दहशतगर्दों का मनोबल लगातार बढता चला गया ।
कश्मीर में दहशतगर्दों की कार्यवाई को देखकर यही लगता है कि इन चंद आग लगाने वाल लोगों को वहीं के सफेदपोश लोगों ने ही पालने और पोशने की जिम्मेदारी ले रखी है ।
आज मैं अपने लेख के माध्यम से कश्मीर के ऐसे बहादुर देशभक्त लोगों के बारे में बताने जा रहा हूं, जिनके बारे में जान कर हर एक हिंदुस्तानी का सीना गर्व से चैङा हो जायेगा और ऐसे बहादुर कश्मीरियों के बारे में हमारी मीडिया बहुत कम बात करती है ।
सबसे पहले मैं आप सभी को इस बार के अशोक चक्र विजेता स्व. लांश नायक नजीर अहमद वानी के बारे में बताने जा रहा हूं । वानी कशमीर के कुलगाम जिले के चेकी अश्मुजी गांव के रहने वाले थे, वानी शुरुवात में एक सक्रिय आतंकवादी थे लेकिन सरकार के प्रयास के बाद वानी ने आतंक का रास्ता छोङ दिया और टेरिटोरियल आर्मी में शामिल हो गये । अपनी कार्य कुशलता और जांबाजी के कारण वानी बहुत ही कम समय में लोकप्रिय हो गये थे और आतंकियों के छक्के छुङाने की वजह से उनको दो बार सेना मेडल से सम्मानित किया गया था । वानी अपने आप में बहुत ही असाधारण सैनिक थे इसलिये उनको, उनके असाधारण वीरता के लिये, शांतिकाल में दिये जाने वाले सबसे बङे सम्मान अशोक चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया । 23 नवंबर 2018 को जब वानी 34 राष्ट्रीय राइफल में तैनात थे, अपने साथियों के साथ डयूटी पर थे, कि शोपियां के बटागुंड गांव में 6 आतंकियों के छिपे होने की खुफिया जानकारी मिली, वानी और उनकी टीम को आतंकवादियों को भागने से रोकने की जिम्मेदारी दी गयी थी । आतंकियों से लोहा लेते हुये वानी ने 2 आतंकवादियों को मार गिराया और अपने साथियों को बचाते हुये स्र्वोच्च बलिदान दिया और भारत माता की रक्षा करते हुये शहीद हो गये ।
यह बात स्पष्ट है कि जहां पर वानी जैसे जांबाज लोग रहते हों और जिन्होने खुद को देश के लिये कुर्बान कर दिया हो, ऐसे में क्या यह कहना सही होगा कि कश्मीर में सभी दहशतगर्द हैं??? नही, बिल्कुल नही ।
अब हम आपको एक ऐसी बहादुर, निडर लङकी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका नाम है खुश्बू जान और कश्मीर में लाख कोशिशें करने के बाद भी अगर आज तक आतंकवादियों के मंसूबे कामयाब नही हो पाये हैं, तो इसकी सबसे बङी वजह खुश्बू जान जैसी देशभक्त कशमीरी ही है । खुश्बू शोपियां जिले के वेहिल गांव की रहने वाली थी और खुश्बू का बचपन दहशतगर्दी से मुकाबला करते ही गुजरा ।
2016 में जब दक्षिण कशमीर के शोपियां जिले के वेहिल गांव में पत्थरबाजों के खिलाफ एक आपरेशन चल रहा था, जिसमें पत्थरबाज सुरक्षाबलों पर बहुत बङी मात्रा में पथराव कर रहे थे, पत्थरबाजों के लाख उकसाने के बावजूद खुश्बू जान और उसके पिता इसमें शामिल नही हुये और सुरक्षा बलों की मदद की, जब मदद की बात दहशतगर्दों तक पहुंची तो उन सभी ने खुश्बू जान का घर जला दिया, कुछ समय बाद जब यह बात जम्मू और कश्मीर पुलिस के आला अधिकारियों तक पहुंची तो उन्होनें खुश्बू को एस. पी. ओ. के पद पर नियुक्त कर दिया और इससे खुश्बू को 5000 रुपये महीने मिलने लगा, खुश्बू बहुत खुश थी , अब वो अपने भाइयों के पढाई में मदद करने लगी थी, खुश्बू खुद भी पढाई जारी रखे हुये थी ताकी वह एक अफसर बन सके और अपने देश की सेवा कर सके । खुशबू के हौसले के सामने आतंकवादियों के मंसूबे पस्त हो गये और इस तरह से खुशबू आतंकवादियों के आंखों में गङने लगी थी और 16 मार्च को वेहिल गांव में ही खुशबू के घर के बाहर ही जैस ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने खुशबू की गोली मार कर हत्या कर दी, इस तरह से हमारे भारत देश की बहादुर बिटिया हमेशा के लिये भारत माता की गोद में सो गयी । बस एक ही बात मन को बार बार झकझोर रही है वह है कि न्यूजीलैण्ड के मस्जिद में हुये हमले पर आर्टिक्ल पे आर्टिक्ल लिखे जा रहे हैं और लिखना भी चाहिये, क्यूंकि उस नृसंस कार्यवाई में भी बेकसूर लोगों की ही हत्या की गई थी, लेकिन खुशबू जान की शहादत ना जाने किस गुमनामी में खो कर रह गई क्यूंकि हमारी मीडिया खुशबू जान के मामले में बिल्कुल खामोश होकर रह गयी ।
हमारे देश के ही कुछ राजनेता और मीडिया ग्रुप के लोग ही नही चाहते कि कश्मीर की सच्चाई देश के बच्चे बच्चे तक पहुंचे । कश्मीर घाटी में जिस तरह से आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाई हो रही है, ऐसे में आतंकवादियों की कमर टूट गयी है और कश्मीर के अवाम के मन से अब आतंकवादियों का डर भी धीरे धीरे कम हो रहा है, इसी से बौखला कर आतंकवादी अब देशभक्त कशमीरियों को अपना निशाना बना रहे हंै, इसी कङी में बारामूला शहर के रहने वाले अर्जुमंद माजिद जो कि एक देशभक्त कार्यकर्ता थे, उनकी हत्या कर दी गई। अर्जुमंद पेशे से एक केमिस्ट थे लेकिन वह नशे के खिलाफ मुहिम में शामिल थे , बारामुला में अर्जुमंद को दहशतगर्दाें के खिलाफ आवाज उठाने वालों में गिना जाता था और इसी वजह से वह लंबे समय से आतंकियों के निशाने पर थे लेकिन अर्जुमंद ने कभी अपने जिंदगी की परवाह नही की और बेखौफ हो कर नशे और आतंकियों के खिलाफ मुहिम में लगे रहे । बस तकलीफ फिर उसी बात की है कि देश के लिये अपनी जान देने वाले अर्जुमंद की मौत पर सभी खामोश हैं, आखिर ऐसी खामोशी का क्या मतलब समझा जाये ???
अंत में यही कहना चाहूंगा कि नजीर वानी, खुश्बू जान, अर्जुमंद माजिद जैसे वीर कश्मीरियों की वीर गाथा को किसी भी कीमत पर गुमनामी के अंधेरे में खोने नही देना चाहिये, ताकि आने वाली पीढीयां इनकी बहादुरी को सलाम करें और यह जान सकें की कश्मीर से हमारे सच्चे देशभक्त कौन कौन हुये हैं ।
क्यूंकि यही वो देशभक्त कश्मीरी हैं जिन्होनें मौत के साये में रह कर भी, देश के लिये खङे होकर, आतंकवादियों से डट कर सामना किया , देश की आन को कम नही होने दिया और अपने देश के लिये शहीद हो गये ।
..................................जय हिंद जय भारत.................