Monday, April 29, 2019

कश्मीर के जांबाज



कश्मीर के जांबाज



आजकल  देश में चुनाव का मौसम चल रहा है, विश्व के सबसे बङे लोकतांत्रिक देश होने की वजह से हम सभी की जिम्मेदारियां भी बढ जाती हैं । देश के हर एक नागरिक का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने कीमती वोट का  प्रयोग करे ताकि देश को एक मजबूत सरकार मिल सके ।

हम सभी यह जानते हैं कि देश को आजाद कराने में हमारे लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन की आहुति दी है,  अगर हमारे देश के, आज के हालात पर निष्पक्ष चर्चा की जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि देश के एक हिस्से में ,खासतौर से कश्मीर में आज भी अमन और चैन कायम नही हो पाया है ,  इसके पीछे वजहें कई हैं लेकिन सबसे बङी वजह है वहां के राजनीतिक दल और वहां रह रहे अलगाववादी, जो रहते हमारे देश में हैं लेकिन हमदर्दी पाकिस्तान के साथ रखते हैं । अफसोस इसी बात का है कि आखिर ऐसे विकृति मानसिकता वाले लोग हमारे देश में क्या कर रहे हैं ??? उनके खिलाफ कङी से कङी कार्यवाई क्यूं नही की जा रही है ???

आज कश्मीर में पत्थरबाजों ने आतंक मचा रखा  है, ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यूं हो रहा है ??? सबसे बङी वजह जो हमें  समझ आ रही है वह है बेरोजगारी, इसी का फायदा उठाकर वहां के मासूम बच्चों को पैसों का लालच देकर पत्थरबाजी करवायी जा रही है और अपने ही लोगों को इसका शिकार  बनाया जा रहा है  ऐसे में सबसे बङा सवाल यह है कि वहां के लोगों को रोजगार मिले भी तो कैसे ??? क्यूंकि जम्मू और कश्मीर के विकास में बाधक धारा 370 और 35ए को वहां के राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिये पाल पोस रखा है ।

हम सभी यह जानते हैं कि आज कश्मीर में जो भी हो रहा है उसकी मुख्य वजह हमारा पङोसी देश पाकिस्तान है , उसके साथ साथ हमारे देश में पल बढ रहे अलगाववादी और कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं, लेकिन यहां यह भी जान लेना आवश्यक है कि कश्मीर की अवाम बिल्कुल भी ऐसी नही है ।

कश्मीर के चंद लोग ही वहां के माहौल को खराब कर रहे हैं , ऐसे लोगों ने इस कदर आतंक फैला रखा है कि कशमीर की बाकी अवाम डर के साये में जी रही है, अफसोस इसी बात का है कि ऐसे दहशतगर्दों पर आज तक कश्मीर के हुक्मरान खामोश ही रहे, अपना मूक समर्थन देते रहे और इसी खामोशी की वजह से दहशतगर्दों का मनोबल लगातार बढता चला गया ।

कश्मीर में दहशतगर्दों की कार्यवाई को देखकर यही लगता है कि इन चंद आग लगाने वाल लोगों को वहीं के सफेदपोश लोगों  ने ही पालने और पोशने की जिम्मेदारी ले रखी है ।

आज मैं अपने लेख के माध्यम से कश्मीर के ऐसे बहादुर देशभक्त लोगों के बारे में बताने जा रहा हूं, जिनके बारे में जान कर हर एक हिंदुस्तानी का सीना गर्व से चैङा हो जायेगा और ऐसे बहादुर कश्मीरियों के बारे में  हमारी मीडिया बहुत कम बात करती है ।

सबसे पहले मैं आप सभी को इस बार के अशोक चक्र विजेता स्व. लांश नायक नजीर अहमद वानी के बारे में बताने जा रहा हूं । वानी कशमीर के कुलगाम जिले के  चेकी अश्मुजी गांव के रहने वाले थे, वानी शुरुवात में एक सक्रिय आतंकवादी थे लेकिन सरकार के प्रयास के बाद वानी ने आतंक का रास्ता छोङ दिया और टेरिटोरियल आर्मी  में शामिल हो गये । अपनी कार्य कुशलता और जांबाजी के कारण वानी बहुत ही कम समय में लोकप्रिय हो गये थे और आतंकियों के छक्के छुङाने की वजह से उनको दो बार सेना मेडल से सम्मानित किया गया था । वानी अपने आप में बहुत ही असाधारण सैनिक थे इसलिये उनको, उनके असाधारण वीरता के लिये, शांतिकाल में दिये जाने वाले सबसे बङे सम्मान अशोक चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया । 23 नवंबर 2018 को जब वानी 34 राष्ट्रीय राइफल में तैनात  थे, अपने साथियों के साथ डयूटी पर थे, कि शोपियां के बटागुंड गांव में 6 आतंकियों के छिपे होने की खुफिया जानकारी मिली, वानी और उनकी टीम को आतंकवादियों को भागने से रोकने की जिम्मेदारी दी गयी थी । आतंकियों से लोहा लेते हुये वानी ने 2 आतंकवादियों को मार गिराया और अपने साथियों को बचाते हुये स्र्वोच्च बलिदान दिया और भारत माता की रक्षा करते  हुये शहीद हो गये ।

यह बात स्पष्ट है कि जहां पर वानी जैसे जांबाज लोग रहते हों और जिन्होने खुद को देश के लिये कुर्बान कर दिया हो,  ऐसे में क्या यह कहना सही होगा कि कश्मीर में सभी दहशतगर्द हैं??? नही, बिल्कुल नही ।

अब हम आपको एक ऐसी बहादुर, निडर लङकी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका नाम है खुश्बू जान और कश्मीर  में लाख कोशिशें करने के बाद भी अगर आज तक आतंकवादियों के मंसूबे कामयाब नही हो पाये हैं, तो इसकी सबसे बङी वजह खुश्बू जान जैसी देशभक्त कशमीरी ही है । खुश्बू शोपियां जिले के वेहिल गांव की रहने वाली थी  और खुश्बू का बचपन दहशतगर्दी  से मुकाबला करते ही  गुजरा ।

2016 में जब दक्षिण कशमीर के शोपियां जिले के वेहिल गांव में पत्थरबाजों के खिलाफ एक आपरेशन चल रहा था, जिसमें पत्थरबाज सुरक्षाबलों पर बहुत बङी मात्रा में पथराव कर रहे थे, पत्थरबाजों के लाख उकसाने के बावजूद  खुश्बू जान और उसके पिता इसमें शामिल नही हुये और सुरक्षा बलों की मदद की, जब मदद की बात दहशतगर्दों तक पहुंची तो उन सभी ने खुश्बू जान का घर जला दिया, कुछ समय बाद जब यह बात जम्मू और कश्मीर पुलिस के आला अधिकारियों तक पहुंची तो उन्होनें खुश्बू को एस. पी. ओ. के पद पर नियुक्त कर दिया और इससे खुश्बू को 5000 रुपये महीने मिलने लगा, खुश्बू बहुत खुश थी , अब वो अपने भाइयों के पढाई में मदद करने लगी थी, खुश्बू खुद भी पढाई जारी रखे हुये थी ताकी वह एक अफसर बन सके और अपने देश की सेवा कर सके । खुशबू के हौसले के सामने आतंकवादियों के मंसूबे पस्त हो गये और इस तरह से खुशबू आतंकवादियों के आंखों में गङने लगी थी और 16 मार्च को वेहिल गांव में ही खुशबू के घर के बाहर ही जैस ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने खुशबू की गोली मार कर हत्या कर दी, इस तरह से हमारे भारत देश की बहादुर बिटिया हमेशा के लिये भारत माता की गोद में सो गयी । बस एक ही बात मन को बार बार झकझोर रही है वह है कि न्यूजीलैण्ड के मस्जिद में हुये हमले पर आर्टिक्ल पे आर्टिक्ल लिखे जा रहे हैं और लिखना भी चाहिये, क्यूंकि उस नृसंस कार्यवाई में भी बेकसूर लोगों की ही हत्या की गई थी, लेकिन खुशबू जान की शहादत ना जाने किस गुमनामी में खो कर रह गई क्यूंकि हमारी मीडिया खुशबू जान के मामले में बिल्कुल खामोश होकर रह गयी ।

हमारे देश के ही कुछ राजनेता और मीडिया ग्रुप के लोग ही  नही चाहते कि कश्मीर की सच्चाई देश के बच्चे बच्चे तक पहुंचे  । कश्मीर घाटी में जिस तरह से आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाई हो रही है, ऐसे में आतंकवादियों की कमर टूट गयी है और कश्मीर के अवाम के मन से अब आतंकवादियों का डर भी धीरे धीरे कम हो रहा है, इसी से बौखला कर आतंकवादी अब देशभक्त कशमीरियों को   अपना निशाना बना रहे हंै, इसी कङी में बारामूला शहर के रहने वाले अर्जुमंद माजिद जो कि एक देशभक्त कार्यकर्ता थे, उनकी हत्या कर दी गई। अर्जुमंद पेशे से एक केमिस्ट थे लेकिन वह नशे के खिलाफ  मुहिम में शामिल थे , बारामुला में अर्जुमंद को दहशतगर्दाें के खिलाफ आवाज उठाने वालों में गिना जाता था और इसी वजह से वह लंबे समय से आतंकियों के निशाने पर थे लेकिन अर्जुमंद ने कभी अपने जिंदगी की परवाह नही की और बेखौफ हो कर नशे और आतंकियों के खिलाफ मुहिम में लगे रहे । बस तकलीफ फिर उसी बात की है कि देश के लिये अपनी जान देने वाले अर्जुमंद की मौत पर सभी खामोश हैं, आखिर ऐसी खामोशी का क्या मतलब समझा जाये ???

अंत में यही कहना चाहूंगा कि नजीर वानी, खुश्बू जान, अर्जुमंद माजिद जैसे वीर कश्मीरियों की वीर गाथा को किसी भी कीमत पर गुमनामी के  अंधेरे में खोने नही देना चाहिये, ताकि आने वाली पीढीयां इनकी बहादुरी को सलाम करें और यह जान सकें की कश्मीर से हमारे सच्चे देशभक्त कौन कौन हुये हैं ।

क्यूंकि यही वो देशभक्त कश्मीरी हैं जिन्होनें मौत के साये में रह कर भी, देश  के लिये खङे होकर, आतंकवादियों से डट कर सामना किया , देश की आन को कम नही होने दिया और अपने देश के लिये शहीद हो गये ।



..................................जय हिंद जय भारत.................


रक्त रंजित बुद्ध की धरती



रक्त रंजित बुद्धकी धरती

जिधर देखो हर तरफ एक खामोशी है, बस एक बार नजर मिलाकर देखो, एक दर्द का तूफान हर एक इंसान ने छिपा रखा है....

इन चंद लाइनों पर अगर घ्यान से विचार किया जाये, तो आज के समय की हकीकत समझ में आ जायेगी । हम सब किस तरफ जा रहे हैं, इसका जवाब खुद बखुद मिल जायेगा, क्यूंकि इस जहान में रहने वाला हर एक इंसान सिर्फ सुख और शांति की कामना करता है लेकिन आजकल  कुछ लोग, धर्म के नाम पर खुद को गलत रास्ते पर ले जाकर हजारों निर्दोष लोगों का खून बहाकर शांति पाते हैं ।

इस संसार में कौन सा ऐसा धर्म है, कौन सी ऐसी किताब है और कौन से ऐसे धर्म गुरु हैं, जिन्होंनें कभी भी अपने मानने वालों से कहा हो कि जाओ निर्दोषों का खून बहाओं, इससे मुझे खुशी मिलेगी और तुम्हें जन्नत नशीब होगी ।

विभिन्न धर्मों में कही गई बातों और उपदेशों का जिक्र किया जाये तो हम बताना चाहेगें कि, हिन्दू सनातन परंपरा में आपसी प्रेम और सदभावना को सबसे प्रमुख स्थान दिया गया है । इस्लाम में पैगंबर साहब ने फरमाया है कि किसी के लिये  भी अपने दिल में कोई भी बुरा ख्याल या कोई भी गलत बात मत लाओ चाहे वह तुम्हारा दुश्मन ही क्यूं ना हो, क्यूंकि इस्लाम में किसी के लिये भी गलत ख्याल को मन में लाना भी गुनाह माना गया है। इस तरह से, ये सोचने वाली बात है कि जिस मजहब में इंसान को यह सिखाया जाता है कि गलत ख्यालात किसी के लिये मत लाओ, ऐसे में क्या इस्लाम कभी भी किसी को इस तरह की बर्बर कार्यवाई के लिये प्रेरित करेगा ???

इसाईयों में जहां प्रभु यीशु,  समाज में सुख और शांति के लिये खुद सूली पर चढ गये और दुनिया  को सच्चाई और नेकी की राह दिखाई ।

इस पूरी कायनात में कोई भी ऐसा मजहब नही है, जो नफरत सिखाता हो, जो बेगुनाहों के खून को बहाने की इजाजत देता हो, ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी हो जाता है कि हमारे समाज में आज कल धर्म के नाम पर जो भी हो रहा है, वह क्या है ???

कुछ चंद लोगों ने पूरे मजहब को शक के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है, आखिर क्यूं ??? हकीकत यही है कि बस चंद लोगों के आगे पूरी दुनिया पस्त नजर आ रही है और हर तरफ सिर्फ दहशत और खौफ ही नजर आता है । बस चंद लोगों की वजह से पूरी दुनिया बेबस सी नजर आने लगी है , पूरी दुनिया में जिस तरह से ऐसे बददिमाग लोग मानवता को तार तार कर रहे हैं उसके पीछे सबसे बड़ी वजह है आपसी एकता  में कमी का होना, क्यूंकि आज कल हर कोई आपस में ही इस तरह दूर हो गया है कि एक घर में आपस के ही लोगों के बीच कोई संवाद नही होता और इसी आपसी भटकाव का फायदा विघटनकारी विचारधारा के लोग उठाते हैं, हमारे नवजवानों को इस तरह से अपने नियंत्रण में कर लेते हैं कि उनको हर एक गलत बात सही लगने लगती है और इस तरह से विघटनकारी तत्वों की संख्या समाज में बढने लगती है ।

आतंकवाद की बात करें तो समूचे विश्व में कोई भी ऐसा देश नही है जो आतंकवाद के दर्द से पीड़ित न हो, बस प्रारुप बदल जाता है लेकिन विषय एक ही  रहता है ।

अभी जल्द ही न्यूजीलैंड में जुमे के नमाज के वक्त, जिस समय हमारे मुस्लिम भाई अपने खुदा को याद कर रहे थे, उसी समय एक सिरफिरे ने अपने पागलपन की आग में सैकड़ों निर्दोष लोगों की हत्या कर दी, आखिर यह सब करके उस इंसान को क्या हासिल हुआ??? कौन सी ऐसी खुशी उस शख्स को मिल गयी होगी, यह सब बहुत ही चिंतनीय और तकलीफ देने वाली बात है ।

न्यूजीलैंड में हुये कत्लेआम के दर्द से हम सब उबरने की कोशिश कर ही रहे थे, कि इसी इतवार को जब पूरी दुनिया में ईस्टर संडे का त्योहार मनाया जा रहा था, जिस समय पूरी दुनिया, प्रभु यीशु के पुनः अवतरित होने की खुशी मना रही थी, ठीक उसी समय श्रीलंका में कई चर्च और कई सारे होटलों में एक के बाद एक, लगातार बम विस्फोट हुये, इस कायराना हमले में 300 से ज्यादा बेगुनाह और निर्दोष लोगों की मौत हो गई, मरने वालों में  40 से भी ज्यादा बच्चे थे  और यह बहुत ही ह्नदय विदारक स्थिति को बयां कर रहा है । ईस्टर का दिन बहुत ही खुशी का दिन होता है और इसको पवित्र रविवार, खजूर ईतवार और सनराइज सर्विस भी कहा जाता है । ईस्टर का त्योहार नव जीवन के बदलाव के प्रतीक के रुप में मनाया जाता है । ऐसा माना जाता है कि सूली पर लटकाये जाने के तीसरे दिन इसी दिन प्रभु  यीशु पुनः जीवित हो गये थे और इसी के खुशी में ईस्टर संडे मनाया जाता है ।

सन 2011 में आधिकारिक जनगणना के अनुसार श्रीलंका की जातीय स्थिति में सबसे ज्यादा 70 प्रतिशत लोग बौद्व धर्म के मानने वाले थे , 12 प्रतिशत  लोग हिंदु धर्म को मानते थे, 9.7 प्रतिशत लोग इस्लाम  को मानते थे जबकि 7.4 प्रतिशत  लोग इसाई धर्म को मानने वाले थे, इस तरह से यह कहा जा सकता है कि श्रीलंका में हर धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं और दुनिया में श्रीलंका तीसरा ऐसा देश है जहां के लगभग 99 प्रतिशत लोग यह दावा  करते हैं कि धर्म उनके जीवन का महत्वपूर्ण अंग है ।

ऐसा देश, जहां सभी धर्म के लोग मिल जुल कर रह रहे हों, जहां भगवान बुद्व के शांति और एकता की वचनों पर चलने वाले लोग रहते हों, वहां इस तरह की अमानवीय घटना का होना बहुत ही दुखदाई है और इस बात में कोई संदेह नही कि दुनिया के जिन जिन जगहों पर हर धर्म के लोग सुख और शांति से रह रहे हैं वहीं पर इस तरह की घटना हो रही है और न्यूजीलैंड और श्रीलंका इसका जीता जागता उदाहरण है ।

 सबसे ज्यादा चैंकाने वाली बात यह है कि ज्यादातर विस्फोट ऐसी जगहों पर ही किये गये जिससे  कि ज्यादा से ज्यादा इसाई समुदाय के लोगों को नुकसान पहुंचे और ठीक ऐसा हुआ भी , इस तरह से यह कहने में  बिल्कुल भी गुरेज नही कि प्रथम द्रस्टया श्रीलंका में हुआ हमला सिर्फ और सिर्फ इसाई समुदाय के लोगों को ही निशाना बना कर किया गया था और ऐसे में दिमाग में एक बात बार बार आ रही है कि श्रीलंका में हुये हमले  का संबंध न्यूजीलैंड में हुये हमले से तो नही, क्यूंकि दोनो जगहों पर हुई घटना  में बहुत सारी समानतायें नजर आ रही हैं । बहर हाल वजह जो भी हो, इस तरह की बर्बरता पूर्ण घटनाओं को कहीं भी , किसी भी सूरत में सही नही ठहराया जा सकता ।

एक सवाल जिसका जवाब अभी तक नही मिल पाया , वह है कि आखिर इस तरह की हमलों के पीछे जो भी लोग क्यूं ना हों, वो खुद को आखिर साबित क्या करना चाहते हैं ??? ऐसे पागल, बददिमाग लोगों को शायद ऐसा लगता होगा कि वही पूरी दुनिया में किसी विशेष धर्म के खेवनहार हैं जबकि ऐसा बिल्कुल भी नही हैं,  क्यूंकि जब इंसान खुद को भगवान साबित करने की फिराक में हो जाता है तभी वह इस तरह की वहसियाना हरकत को अंजाम देता है क्यूंकि किसी भी धर्म में, किसी भी निर्दोष के खून बहाने  को वाजिब नही माना गया है ।



कुल मिलाकर यह कहना बिल्कुल भी गलत नही होगा कि, ऐसे लोग जिन्हे शांति पसंद नही है और जो हमेशा इसी ताक में रहते हैं कि कब उन्हें  मौका मिले और कब वह किसी ना किसी बेगुनाह का खून बहायें, हम सभी के दुश्मन हैं ।

श्रीलंका में हुये कायराना हमले के पीछे एक और बड़ी वजह सामने आ रही है , वह है श्रीलंका के राष्ट्रपति और वहां  के प्रधानमंत्री के मध्य बीते काफी समय से संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी और इसी गतिरोध का फायदा दहशतगर्दों ने उठाया ।

अंत में सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि इस तरह की अमानवीय और निंदनीय करतूतों के पीछे जो भी लोग हैं और ऐसे लोेग खुद को जो भी समझ रहे हों, मेरी अपनी नजर में ऐसे लोग दुनिया के सबसे बड़े कायर लोग हैं , क्यूंकि छोटे छोटे बच्चों और निहत्थों पर इस तरह से हमला सिर्फ एक कायर और डरपोक स्वभाव का मनुष्य ही करवा सकता है ।